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मतवाली ममता

मानव ममता है मतवाली । अपने ही कर में रखती है सब तालों की ताली । अपनी ही रंगत में रंगकर रखती है मुँह लाली । ऐसे ढंग कहा वह जैसे ढंगों में हैं ढाली । धीरे-धीरे उसने सब लोगों पर आँखें डाली । अपनी-सी सुन्दरता उसने कहीं न देखी-भाली । अपनी फुलवारी की करती है वह ही रखवाली । फूल बिखेरे देती है औरों पर उसकी गाली । भरी व्यंजनों से होती है उसकी परसी थाली । कैसी ही हो, किन्तु बहुत ही है वह भोली-भाली । -अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध'