आँख का आँसू
आँख का आँसू ढलकता देखकर जी तड़प कर के हमारा रह गया क्या गया मोती किसी का है बिखर या हुआ पैदा रतन कोई नया ? ओस की बूँदें कमल से हैं कहीं या उगलती बूँद हैं दो मछलियाँ या अनूठी गोलियाँ चांदी मढ़ी खेलती हैं खंजनों की लड़कियाँ । या जिगर पर जो फफोला था पड़ा फूट कर के वह अचानक बह गया हाय था अरमान, जो इतना बड़ा आज वह कुछ बूँद बन कर रह गया । पूछते हो तो कहो मैं क्या कहूँ यों किसी का है निराला पन भया दर्द से मेरे कलेजे का लहू देखता हूँ आज पानी बन गया । प्यास थी इस आँख को जिसकी बनी वह नहीं इस को सका कोई पिला प्यास जिससे हो गयी है सौगुनी वाह क्या अच्छा इसे पानी मिला । ठीक कर लो जांच लो धोखा न हो वह समझते हैं सफर करना इसे आँख के आँसू निकल करके कहो चाहते हो प्यार जतलाना किसे ? आँख के आँसू समझ लो बात यह आन पर अपनी रहो तुम मत अड़े क्यों कोई देगा तुम्हें दिल में जगह जब कि दिल में से निकल तुम यों पड़े । हो गया कैसा निराला यह सितम भेद सारा खोल क्यों तुमने दिया यों किसी का है नहीं खोते भरम आँसुओ, तुमने कहो यह क्या किया ? -अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध