दिल-ए-नादान तुझे हुआ क्या है
आखिर इस दर्द कि दवा क्या है

हम है मुश्ताक और वो बेज़ार [मुश्ताक(interested) = दिलचस्पी लेने वाला] [बेज़ार(sick of) = उदास,बीमार]
या ईलाही! ये माजरा क्या है

हम भी मुहँ मे जबान रखते हैं
काश पूछो कि मुद्दा क्या है

जब की तुझ बिन नही कोई मौजूद
फिर ये हंगामा ऐ खुदा क्या है

ये परी-चेहरा लोग कैसे है
गमज़ा-ओ-इश्वा-ओ-अदा क्या है

-मिर्जा गालिब

टिप्पणियाँ

  1. दिल को छू लेने वाले अल्फ़ाज़ हैं..

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  2. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  3. दूसरी पंक्ति है
    आख़िर इस दर्द की दवा क्या है

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  4. रमन भाई,
    दर्द की दवा भी एक और दर्द हीं है…!!!
    बहुत सुंदर पंक्तियाँ,कुछ भी कहना इनकी गरिमा को कम करना होगा…।

    जवाब देंहटाएं
  5. कोई दवा नहीं, इन्हीं गालिब चचा ने फरमाया है:

    इश्क पर जोर नहीं ये वो आतिश है गालिब, जो लगाए न लगे और बुझाए न बुझे।

    वैसे इसकी एक दवा है - समय

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